शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कोलकाता की शहीद मीनार

कलकत्ता/कोलकाता से संबंधित चौरंगी, विक्टोरिया मेमोरियल के बाद यह तीसरी किस्त है.  शहीद मीनार भी कोलकाता में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है तथा अच्छे-बुरे समय की गवाह रही है.  
  
कलकत्ता/कोलकाता की पहचान बताने वाले स्मारकों में एक मीनार भी शामिल है। जो कोलकता के दिल चौरंगी के पास स्थित है। यह भी दिल्ली की कुतुब मीनार की तर्ज पर जंग में फतह की निशानी के तौर पर बनाई गयी थी। सन 1848 में सर डेविड आक्टरलोनी ने नेपाल की लडाई में अपनी विजय को यादगार बनाने के लिए इसे बनवाया था। इसी लिए पहले इसे "आक्टरलोनी मौन्यमंट" के नाम से जाना जाता  था। पर सन 1969 से इसे एक नया नाम दे दिया गया, "शहीद मीनार"। जो देश की आजादी के लिए शहीद हुए देशभक्तों की याद में रखा गया था। 

आजकल यहां, दिल्ली के 'जंतर-मंतर' की तरह, विभिन्न दलों के जुलुसों की शुरुआत, ऐतिहासिक समारोहों का आयोजन या दलों द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए बैठकें आयोजित की जाती हैं। यहां हुई ऐसी सबसे पहली बैठक का ब्योरा 1931 का मिलता है, जब कवि-गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने एक दिक्षांत समारोह का सभापतित्व करते हुए अंग्रेज सरकार के कार्यों के प्रति विरोध प्रगट किया था।               
     
इस मीनार की ऊंचाई 158 फिट है तथा ऊपर की तरफ दो छज्जे, खडे होने के लिए बने हुए हैं। ऊपर जाने के लिए मीनार की गोलाई के साथ-साथ अंदर की ओर सीढियां बनी हुई हैं जिनकी संख्या 223 है। मीनार के ऊपर से शहर की खूबसूरती को बखूबी निहारा जा सकता है। पर कुछ वर्षों पहले कुछ दुखद हादसों के कारण इस पर निर्बाध चढना बंद करवा दिया गया है। अब इस पर चढने के लिए कोलकाता पुलिस से इजाजत लेनी पडती है।

9 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हमने इसे परम्परा में लेकर अपने शहीदों के नाम कर दिया, वाह।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप के सहारे फिर से घूम रहा हूँ अपनी जन्मभूमि मे ... बहुत बहुत आभार आपका !

रचना दीक्षित ने कहा…

सुंदर जानकारी.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

इसे शहीदों के नाम तो कर दिया पर यहां से जैसे काम शुरु किए जाते हैं क्या उनसे शहीदों का मान बढता होगा?

मनोज कुमार ने कहा…

हम तो कोलकाता में रहकर भी इतना कुछ इस मीनार के बारे में नहीं जानते थे। आज जान लिए। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बढ़िया और रोचक जानकारी...

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया जानकारी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनोज जी, शैशवावस्था से लेकर युवावस्था की दोपहरी तक जहां समय गुजरा हो, कहीं भी रहें, उसे भूल पाना असंभव सा है।

G.N.SHAW ने कहा…

गगन सर जी ! मै तो इसके ऊपर चढ़ चूका हूँ !अब दरवाजे बंद है !शहर की तस्वीर देखने लायक होती है !

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